रांची जिला स्कूल
इस स्कुल से झारखंड में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत हुई थी। दशकों तक यह स्कुल झारखंड के शिक्षा व्यस्व्था का आधार बना रहा। यह स्कुल शहर के मध्य में स्थित है और 13 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। 1839 में स्थापित यह स्कुल , लंबे समय तक इस क्षेत्र का एकमात्र इंग्लिश मिडिल स्कूल बना रहा और यह कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफिलेटेड था। रांची में इस स्कुल की शुरुआत मेजर जे. आर. औस्ले, छोटा नागपुर के आयुक्त ने एक सरकारी माध्यमिक अंग्रेजी स्कूल के रूप में की थी। जिसके पहले प्रधानाध्यापक बाबू महेश चंद्र चटर्जी थे। ऐसा माना जाता है कि यह स्थानीय मारवाड़ी हाई स्कूल के वर्तमान स्थल पर स्थित था। 1858 के महान विद्रोह के दौरान स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा इसकी इमारत और फर्नीचर को नष्ट कर दिया गया था । बाद में, उसी स्थल पर इमारत का पुनर्निर्माण किया गया। इस स्कुल में 1857 के आंदोलन के बाद बदले की भावना के साथ कुछ नकारात्मक आदेश अंग्रेजो ने जारी किये। 1858 से ब्रिटिश अधिकारियों ने पुस्तकों के संबंध में रियायत वापस ले ली और 1860 से शुल्क भी लगा दिया। 1868 में, पहली बार, रांची सरकारी स्कूल के एक छात्र को कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के लिए तैयार किया गया और वह सफल रहा। 1873 में, स्कूल को एक नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया (जिसमें बाद में प्रशिक्षण विद्यालय बना, जो अब रांची विश्वविद्यालय विभाग के मुख्य खंड में शामिल है) और 1875 में इसे हाई स्कूल बना दिया गया और इसे रांची जिला स्कूल के रूप में जाना जाने लगा। उसी वर्ष भारत के गवर्नर-जनरल और वायसराय, लार्ड लिटन ने इस स्कूल का दौरा किया और मेधावी छात्रों को पुरस्कार देने के लिए केवल 50 रुपये का अनुदान दिया। इस स्कुल के विकास में छोटा नागपुर के आयुक्त कर्नल ई. टी. डाल्टन का भी विशेष सहयोग रहा , विशेष रूप से आउटडोर खेलों के संबंध में। 1875 में इसमें 173 छात्र नामांकित थे और 1912 तक यह संख्या बढ़कर 500 हो गई। 1915 में स्कूल को वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया था । जिले में कॉलेज शिक्षा शुरू करने का सबसे पहला प्रयास 1926 में हुआ जब रांची ज़िला स्कूल में आई.ए. की कक्षाएं खोली गईं और पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दी गईं। कॉलेज की कक्षाएं रांची झील के पास स्थित स्कूल के छात्रावास भवन में आयोजित की जाती थीं, जिसे ज़मींदारी छात्रावास के नाम से जाना जाता था। 1 अगस्त, 1946 से रांची गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज ने रांची ज़िला स्कूल से अलग एक अलग संस्थान के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया था। इसके अंतिम यूरोपीय प्रधानाध्यापक टी.आर.स्पिलर , 1933-36 थे। 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में 14 अगस्त को जिला स्कूल परिसर के पास जुलूस निकाल रहे कुछ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया और प्रमुख स्थानीय नेताओं को पुलिस हिरासत में ले लिया गया था । 2003 में इसका नाम बदलकर अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ज़िला विद्यालय, रांची कर दिया गया, शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव 1857 के महान स्वतन्त्रता सेनानी है ।


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