पथलगड़ी
मुंडाओं में पथलगड़ी की प्राचीन प्रथा। यह प्रथा विश्व भर में ऐतिहासिक व प्रागैतिहासिक काल की प्रथा है। इसे मेगालिथ के नाम से जाना जाता है। मेगालिथ, जिसे हिंदी में महापाषाण भी कहा जाता है, एक बड़ा पत्थर या पत्थर का समूह है जिसका उपयोग स्मारक, दफन स्थल या अन्य संरचनाओं के निर्माण के लिए किया जाता था। मुंडाओं में जो मेगालिथ प्रथा की पथलगड़ी प्रचलित है उसके कई प्रकार है
होरादिरी - यह वह पत्थर है जिस पर वंश वृक्ष लिखा जाता है।
चल्पादिरी या सासनदिरी - यह किसी भी गांव और उसकी सीमाओं की सीमा को चिह्नित करने वाला पत्थर है।
मगोदिरी - यह उस सामाजिक अपराधी का क़ब्र का पत्थर है जिसने बहुविवाह या असामाजिक विवाह किया हो।
ज़िददिरी - यह एक ऐसा पत्थर है जिसके नीचे नवजात शिशु के गर्भनाल और सूखे नाभि को दफनाया जाता है।
बिददिरी' और 'थेनदिरी'- मृतक की स्मृति-पट्टिका
मृत्यु के एक वर्ष बाद 'बिददिरी' और 'थेनदिरी' सम्पन्न होते थे अर्थात्, मृतक की स्मृति-पट्टिकाओं का लगाया जाना । इन विधियों में काफी व्यय होता था । वास्तविक समारोह से कुछ दिन पूर्व दो पत्थर -एक चपटा तथा दूसरा लम्बा एवं पतला चुन लिये जाते थे । चपटा पत्थर 'थेनदिरी' तथा दूसरा 'बिद-दिरी' के काम आता था । थेनदिरी' के दिन ही या अगले दिन 'बिददिरी' का पत्थर खड़ा किया जाता था । बिददिरी को मृतक के घर जाने वाली सड़क पर लगाया जाता था । कभी-कभी तो उसके घर के हाते में भी गाड देते थे । कभी-कभी बिददिरी पत्थर पर मृतक का नाम, गाँव और गोत्र लिखे जाते थे ।
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