पाइका नृत्य

झारखंड के मुंडा और सदानो में पाइका नृत्य का प्रचलन है। यह युद्ध की तैयारियों से जुड़े परम्पराओ का प्रतिनिधित्व करता है। नर्तक धनुष, तीर, भाले, तलवार और ढाल धारण करते हैं और नृत्य वास्तव में हथियारों की एक पारम्परिक पूजा है। ढाल और तलवार के उपयोग से नृत्य का युद्ध चरित्र बरकरार है। नर्तक तलवार और ढाल के साथ मांदर की तेज थाप के साथ नृत्य करते है। इस नृत्य के बिना दशहरा उत्सव अधूरा रहता है । पाइका पुरुष प्रधान नृत्य हैं। कहीं-कहीं इस नृत्य में कली (नर्तकी) भी सम्मिलित रहती है। इसमें पाँच, सात, नौ के जोड़े होते हैँ। पाइका नर्त्तक रंग- बिरंगी सजी सजाई झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी बांधते है। पहले यह नृत्य मेहमानों के स्वागत के लिए किया जाता था, लेकिन आजकल यह विवाह जैसे विभिन्न खुशी के अवसरों पर भी किया जाता है।

इसकी शैली इसका युद्ध से संबंध को इंगित करती है। यह मूलतः युद्ध नृत्य है। झारखंड में कन्या हरण की पुरानी प्रथा है। मुंडाओं में भी हाट , बाजार , मेला, जतरा आदि से मुंडा युवक अपनी पसंद की लड़की का अपहरण कर लाते थे। इसी दौरान गाँव / घर आने पर इस नृत्य की परम्परा रही है। नृत्य मुंडा युवाओ के शौर्य का प्रतीक है। इस नृत्य की संगीत संगत ढोल, नगाड़ा, शहनाई और रणभेरी हैं। अपने सुरक्षात्मक सीने के ब्लेड के अलावा, नर्तक अपने टखनों के चारों ओर रंगीन टोपी और घंटियाँ भी पहनते हैं। यह मनमोहक नृत्य शैली, जो मुंडाओं का अपना है। यह नृत्य अब लुप्त होता जा रहा है। एक समय यह समाज का अभिन्न अंग था लेकिन आज यह सांस्कृतिक मंचो के माध्यम से ही जिन्दा है।

फोटो : यह फोटो 19 बीसवीं सदी के शुरुआत की है (1900 - 1910 ईस्वी ) . फोटो में मुंडा वर - वधु शादी के बाद अपने घर / गाँव वापस आये है। साथ में पीछे पाइका नृत्य के वेशभूषा में मुंडा युवाओ को देखा जा सकता है। पाइका नर्तकों ने आज की तरह ही रंगीन कपड़ो को शरीर में लपेट कर अपना वस्त्र तैयार किया है। सिर की पगड़ी भी मोर कलगी से सजी है।