कुंकणा भाषा की रामायण
गुजरात में 28 ऐसी आदिवासी और स्थानीय भाषाएँ है जो बिना किसी लिपि की आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक हस्तनांतरण से सुरक्षित राखी कुंकणा आदिवासी या डांगी जनजाति समुदाय महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर रहते है। कुकना समुदाय को "डांग या डांगी " के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह डांग जिले में रहते है ।
मुख्य रूप से महाराष्ट्र के सह्याद्रि-सतपुड़ा पर्वतमाला (नंदुरबार और धुले जिले) और गुजरात (डांग, नवसारी और वलसाड जिले) में रहते है। अपनी कलात्मक परंपराओं, खास तौर पर लकड़ी की नक्काशी और मुखौटा बनाने के लिए जाने जाते हैं। उनके पास अपनी सांस्कृतिक पहचान और विशिष्ट कुंकणा भाषा है। ये अपने विशिष्ट डांगी नृत्य के लिए भी जाने जाते है। डांग नृत्य , होली जैसे त्योहारों के दौरान किया जाता है। यह मेलों और अनुष्ठानिक समारोहों में भी किया जाता है। नृत्य तेज गति वाला और लयबद्ध होता है। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है। डांगी पुरुष और महिलाएँ एक घेरे में खड़े होते हैं और वे अलग-अलग गति रूपों के साथ घेरे में गोल घूमते हुए नृत्य करते हैं। उनकी बाँहें बगल के नर्तक के कंधे या कमर पर बंधी होती हैं। जैसे-जैसे नृत्य आगे बढ़ता है, उसकी गति तेज़ होती जाती है, तब तक जब तक कि प्रदर्शन को रोक नहीं दिया जाता। इस नृत्य में बहुत अधिक शारीरिक फुर्ती और संतुलन की आवश्यकता होती है क्योंकि महिलाएँ मानव पिरामिड बनाने के लिए पुरुषों के कंधों पर चढ़ जाती हैं। इन मानव पिरामिडों में दो से तीन स्तर हो सकते हैं और वे उसी के अनुसार दक्षिणावर्त (घड़ी की सुई की दिशा में) या वामावर्त (घड़ी की सुई की उल्टी दिशा में) घूमते हुए नृत्य करते हैं। इनकी एक और विशेषता है इनका अपना रामायण है। इस भाषा में रामकथा का मतलब भगवान राम( Rama )के बजाय रावण (Ravana )की कहानी से है। इस रामायण में रावण का जीवनवृत्तांत अधिक विस्तारित है। यह रामायण वाल्मीकि रामायण से काफी अलग है। कई लोगो का मानना है की गुजरात का डांग क्षेत्र प्राचीन काल में दंडकारण्य था। डांग रामायण में रावण स्थानीय राजा ओपिंगदेव का विकलांग पुत्र था। अपने भाइयों द्वारा अपने विकलांगता का मजाक उड़ाने के साथ सामने आती है, जिसने उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। इस अपमान से आहत रावण ने भगवान शिव का आशीर्वाद पा कर विकलांगता दूर करने के लिए तपस्या शुरू की। रावण की वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसे एक मंदिर में ले गए, लेकिन उसे एक खास कमरे में प्रवेश से मना किया । हालांकि, भगवान शिव की अनुपस्थिति में रावण उस कमरे में चला जाता है। उस कमरे में उसे अमृत रखा मिलता है। पानी जैसे दिख रहे उस अमृत को पीने से उसे नौ सिर और मिल जाते है । कृष्ण की चालाकी से रावण को मंदोदरी और राम के रूप में मृत्यु का माध्यम मिलता है। इस रामायण में सीता रावण की पुत्री और राम रानी कैकयी का पुत्र है। लक्ष्मण शेषनाग का पुत्र है जिसे रावण राम को मारने भेजता है। यह मौखिक परंपरा ) oral tradition) के रूप में पीढ़ियों से चली आ रही है। अतीत में रामायण प्रदर्शन सात दिनों तक चलता था और यही मनोरंजन का मुख्य जरिया होता था। रामकथा कांस्य (bronze) प्लेट, मोम और पतली बांस की छड़ी से बने स्वदेशी संगीत वाद्ययंत्र (indigenous musical instrument) पर बजते हुए ‘छंद’ में दोहे गाये जाते हैं। रामायण का कुंकणा संस्करण उनके अपने सामाजिक इतिहास का वर्णन है। इसे समझने के लिए क्षेत्र के इतिहास, अंतर-जनजातीय संबंधों, खासकर कुंकना और भीलों के बीच, और औपनिवेशिक शासन और क्षेत्र की राजनीति पर इसके असर के बारे में कुछ जानकारी होनी चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि राम अपने वनवास के दौरान इस स्थान पर आए थे। डांग को पौराणिक दंडकारण्य माना जाता है, जबकि ऊनई, गर्म झरनों वाला स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे राम ने मतंग ऋषि के लिए बनाया था, जो शबरी नामक महिला के गुरु थे, जिन्होंने राम को जंगली बेर खिलाए थे।
रामायण के विभिन्न रूपों पर लिखी गई रचनाओं में, फादर कामिल बुल्के के रामकथा के रामकथा को छोड़कर, आदिवासी आख्यानों का शायद ही कोई उल्लेख है। लेकिन तब भी देश में कई समुदायों के अपने रामायण आख्यान है जिन्हे उन्होंने अपने वाचन शैली से जीवित रखा है। फादर कामिल बुल्के ने अपनी शोध पुस्तक "रामकथा: उत्पत्ति और विकास" में जनजातीय समुदायों की पारंपरिक कथाओं और उनकी रामकथा से जुड़ी मान्यताओं को भी शामिल किया है। उनके शोध में, उन्होंने बताया है कि जनजातीय समुदायों में रामकथा का अर्थ और स्वरूप कुछ भिन्न होता है, और वे इन अंतरों को समझने के लिए विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।
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