पूर्वी भारत का एकमात्र मुखौटा नृत्य
विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य
छऊ पूर्वी भारत की एक प्रमुख नृत्य परंपरा है। पूर्वी भारत में मुखौटो के साथ यह नृत्य एक आश्चर्य उत्पन्न करता है। भारत के गिने चुने मुखोटे वाले नृत्य में से यह पूर्वी भारत में अनौखा है। यह पूर्वी भारत में उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल प्रांतों के सीमावर्ती क्षेत्रों के आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित है। छऊ/ छौ नृत्य के निर्माण में 'छाया' शब्द से है। छऊ नृत्य मूल रूप से एक मुखौटा नृत्य है। यह 'नाट्यशास्त्र ' के शास्त्रीय नाट्य सिंद्धातो से पूर्ण है। नाट्यशास्त्र का 23वां अध्याय व्यापक रूप से विविध मुखौटों और उनके निर्माण की प्रक्रियाओं का वर्णन करता है।इसलिए छऊ नृत्य का शास्त्रीय गुण भारतीय नृत्य कला को गौरन्वान्वित करता है। छऊ की तीन अलग श्रेणियाँ हैं जो तीन अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ , झारखंड का सरायकेला छऊ और उड़ीसा का मयूरभंज छऊ हैं।
ऐसा नहीं की तीनो छऊ नृत्य में मुखौटो का प्रयोग होता है। मुखौटे का प्रयोग सराईकेला और पुरुलिया छऊ नृत्य में होता हैं। मयूरभंज छऊ नृत्य में इसका प्रयोग नहीं होता है। छऊ पूर्वी भारत की एक प्रमुख नृत्य परंपरा है। पूर्वी भारत में मुखौटो के साथ यह नृत्य एक आश्चर्य उत्पन्न करता है। भारत के गिने चुने मुखोटे वाले नृत्य में से यह पूर्वी भारत में अनौखा है। यह पूर्वी भारत में उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल प्रांतों के सीमावर्ती क्षेत्रों के आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित है। छऊ/ छौ नृत्य के निर्माण में 'छाया' शब्द से है। छऊ नृत्य मूल रूप से एक मुखौटा नृत्य है। यह 'नाट्यशास्त्र ' के शास्त्रीय नाट्य सिंद्धातो से पूर्ण है। नाट्यशास्त्र का 23वां अध्याय व्यापक रूप से विविध मुखौटों और उनके निर्माण की प्रक्रियाओं का वर्णन करता है।इसलिए छऊ नृत्य का शास्त्रीय गुण भारतीय नृत्य कला को गौरन्वान्वित करता है। छऊ की तीन अलग श्रेणियाँ हैं जो तीन अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ , झारखंड का सरायकेला छऊ और उड़ीसा का मयूरभंज छऊ हैं। इसके अलावा खूंटी का सिंगुवा छौ शैली का विशेष स्थान रखती है
ऐसा नहीं की तीनो छऊ नृत्य में मुखौटो का प्रयोग होता है। मुखौटे का प्रयोग सराईकेला और पुरुलिया छऊ नृत्य में होता हैं। मयूरभंज छऊ नृत्य में इसका प्रयोग नहीं होता है। कोलकाता में शरत चंद्र बोस के घर पर छऊ नृत्य कार्यक्रम आयोजित हुआ था. सराईकेला राजघराने के कुंअर विजय प्रताप सिंहदेव, राजकुमार सुधेंद्र नारायण सिंहदेव, बिहारी पट्टनायक ने अपने टीम के साथ गांधीजी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सामने नृत्य प्रस्तुत किया था.
1938 में वे छऊ डांस ग्रुप ने पहली बार विदेश में यूरोप में नृत्य का मंचन किया। अब तक Shri Raj kumar Suddhendra Narayan Singh Deo से Shri Shashadhar Acharya तक 8 लोगो को इस नृत्य के लिए पदम् सम्मान मिल चुके है। 2010 में यूनेस्को ने छऊ को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल कर लिया । एक लोक नृत्य के रूप में हाल के वर्षो में छौ नृत्य शास्त्रीय नृत्यों के समान प्रसिद्ध हो गया है।
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गांधी का छऊ नृत्य के साथ अनुभव
घटना: 1937 में, सरायकेला के महाराजा आदित्य प्रताप सिंह देव और कुमार विजय प्रताप सिंह देव ने गांधी के लिए सरायकेला छऊ का एक विशेष प्रदर्शन आयोजित किया था।
स्थान: यह प्रदर्शन कलकत्ता (अब कोलकाता) में, शरत चंद्र बोस के निवास की खुली छत पर हुआ था।
उनकी प्रतिक्रिया: इस प्रदर्शन में राजकुमार सुवेंद्र नारायण सिंह देव द्वारा प्रस्तुत मयूर नृत्य (मयूर नृत्य) भी शामिल था। हालाँकि राजनीतिक चर्चाओं के कारण देर हो गई, गांधी ने प्रदर्शन देखा और राजकुमार से कहा, "आप बहुत सुंदर नृत्य करते हैं," यह टिप्पणी उनकी प्रशंसा को दर्शाती है।
संदर्भ: सरोजिनी नायडू ने ही सबसे पहले गांधी को सरायकेला छऊ की सुंदरता का वर्णन किया था, और इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे यह नृत्य शैली राजघरानों और आम लोगों को एक साथ प्रस्तुत करती थी।
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